कलम उठी कविता लिखने को शीर्षक भरमार मिले
चाहत थी जिनको लिखने की वे आहात विमार मिले
देश का यारों क्या होगा, जब अपनी खिचड़ी पकानी है
अन्ना जैसे गाँधी पर भी, जब बेजुबानी फब्त्ती करनी है
आईने को झुठलाने की आदत, हमें छोड़नी होगी
तबियत से आगे आकर, नयी पहल जब करनी होगी
खादी और आबादी को, अब मिलकर हाथ बढ़ाना है
सपनो के भारत से अब तो , भ्रस्ताचार मिटाना है