Wednesday 21 February 2018

नीरव कि साजिश और प्रिया की अदा ने लूटा हिंदुस्तान !

आलेख




नीरव की साजिश और प्रिया की अदा ने लूटा हिंदुस्तान !





                   प्रभुनाथ शुक्ल





हम भारत निर्माण की बात कर रहें हैं। डिजिटल और स्किल इंडिया की उड़ान भर रहें हैं , लेकिन हमारे समाज की दूसरी संस्थाएं कितनी नैतिक जिम्मेदारी से राष्ट्र की प्रगति में लगी हैं यह विचारणीय बिंदु है । बात उठी है तो दूर तलक जाएगी। सिनेमा , साहित्य और कला किसी भी राष्ट्र का आईना होता है । लोग उसमें अतीत और व्यतीत तलाशते हैं। लेकिन संचारक्रांति ने हमारी समाजिक और सांस्कृतिक विरासत की नींव को हिलाकर रख दिया है । दक्षिण भारत की एक मलयालम फिल्म हमें सोचने पर मजबूर करती है। सिनेमा संसार किस चरित्र का निर्माण कर रहा है यह सोचने का विषय है । हमारी युवा पीढ़ी का भविष्य क्या होगा और वह कहाँ जा रही है यह भविष्य के गर्त में है ।
फिल्में अभिव्यक्ति की सशक्त माध्यम और समाज का दस्तावेज होती हैं । भारत जाति और धर्म समूहों में बँटा है । फिल्मों का निर्माण भी व्यवसायिक हित को ध्यान में रख कर किया जाता है । लिहाजा फिल्मों में यथार्थ से अधिक  फंतासियों का पुट अधिक रहता है । यह कल्पना लोक पर आधारित होती हैं । आधुनिक दौर में फिल्म निर्माण का असली मकसद सिर्फ पैसा कमाना है, इसलिए मूल कथानक में मसाला डालना आम बात है । क्योंकि इनका निर्माण एक खास तबके को ध्यान में रख कर बनाया जाता है। देश की छवि और उसकी विरासत पर कम व्यापार पर मूल होता है।हमें याद रखना होगा कि फिल्मों का किरदार सिर्फ इतिहास और कहानी के मध्य नहीँ घूमता। किसी भी फिल्म में मजबूत कहानी , किरदार , संवाद , फिल्मांकन और मनोरंजन का होना ज़रूरी है। क्योंकि फिल्मों का मूल उद्देश्य दर्शकों का मनोरंजन करना भी होता है । इतिहास के किरदार को लेकर बनी संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत का भी यहीं हाल हुआ। लेकिन यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीँ है । भारत का समाजिक ढाँचा विभिन्न जाति , धर्म , भाषा समूहों को मिला कर बना है । हमारा संविधान अपनी सीमा में सभी के अधिकारों का पूरा संरक्षण करता है और आजादी के संरक्षण के लिए सम्बन्धित संस्थाएं बनी हैं ।  लेकिन जब किसी मसले को भोंडेपन से जोड़ कर सिनेमा , साहित्य और कला की आड़ में अभिव्यक्ति की बात की जाय तो यह भद्दा मजाक होगा। महिला अधिकारवाद को लेकर यह कैसी वकालत ?

प्रिया प्रकाश वरियर एक मलयालम अभिनेत्री हैं।रुपहले पर्दे पर अपनी एक अदा से रातोंरात सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। मलयाली फिल्म में एक 10 सेकंड के गाने की क्लिप ने हिंदुस्तान भर में कोहराम मचा दिया। इस उपलब्धि से लगता है कि  हिंदुस्तान में अब किसी तरह की समस्याएं नहीँ हैं। अब केवल आँख के इशारे पर देश को नाचना है  र उसी से देश, समाज का आर्थिक उन्नयन होना है।पकौड़े की राजनीति करने वालों को नयन व्यापर भाता है । लेकिन भारत तेरे टुकड़े होंगे - - - -जैसे नारों से अभिव्यक्ति की आजादी प्रभावित होती है । पुरस्कार वापस किए जाते हैं । इसे अभिव्यक्ति का आपातकाल कहा जाता है । पद्मावत और भीमा कोरेगाँव पर देश सुलग सकता है। लेकिन प्रिया के नयन बाण पर किसी को कोई खतरा नहीँ ? क्यों ।
देश की एक बेटी का इस तरह का कारनामा हमें गर्व दिलाता है तो फ़िर उसकी असुरक्षा को लेकर कोहराम क्यों मचाते हैं । निर्भया जैसी घटना पर देश क्यों रोता है ? हम भी महिला अधिकारों की खुली वकालत करते हैं । बेटीयों की उड़ान को सारी सुविधाएँ और खुला आसमान मिलना चाहिए। लेकिन उस तरह का खुलापन जो हमारी नैतिकता को मिट्टी में मिलाए और एक पीढ़ी को दिशाहीन बनाए किस काम की। इस फिल्म को क्या एक पूरी पारिवारिक फिल्म कहा जा सकता है । हम परिवार के साथ उसे थियेटर में देख सकते हैं ? घर की चाहारदीवारी में अपनी बेटी और बहन को इस तरह का अनैतिक प्रदर्शन की खुली छूट हम दे सकते हैं ? जाहिर सा सवाल है यह नामुमकिन है , फ़िर इस तरह की फिल्म को हम बढ़ावा क्यों दे रहें हैं,  जो हमारी पीढ़ी को गलत रास्ते पर ले जाती है ।
जिस गंदी कुरीति को हम स्वयं आत्मसात नहीँ कर सकते उसे समाज में बढ़ावा क्यों दे रहें हैं । देश आर्थिक , सामाजिक, जातिवाद, अलगाववाद , नस्लवाद , भाषा और प्रांतवाद से जूझ रहा हैं। कश्मीर में आतंकवाद हमें निगल रहा हैं । चीन और पाक हमारे खिलाफ नीत नई साजिश रच रहें हैं । आर्थिक घोटाले हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ तोड़ रहें हैं । लेकिन हम देश की चिंता छोड़ सिर्फ सियासी नफे - नुकसान की गणित में लगे हैं ।

नीरव मोदी 14 सौ करोड़ लेकर भाग गया। इसके पूर्व माल्या भी कंगाल कर भाग गया। लेकिन इन मसलों पर  कोहराम नहीँ मचा। सीमा पर हर रोज़ जवान शहीद हो रहें हैं,  उनके सम्मान में आँखें नम नहीँ हुईं।  लेकिन आँख मारने की अदा पर पूरा हिंदुस्तान लूट गया। टीवी पर नीरव मोदी ग

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